poem003

अखिल हिंदू विजय ध्वज

अखिल हिंदू विजय ध्वज हम उभारे पुनः ||धृ||
यह ध्वजा प्राच्यकाली | उभारे पराक्रम शाली |
रामचंद्र लंका पर जो | वधीत रावणा ||
करे जब सिकंदर स्वारी | चंद्रगुप्त अरी संहारी |
हिंदू कुश छोटी चढता | जीतकर रणा ||
करे संरक्षण ध्वज का | शालीवाहन ये साँचा|
करे संहार शकोंका | समर में क्षणा ||
जाब जाब भी हिंदू अधिराज, करे अश्वमेध याज |
यही बढत आगे चलता | कर विजय गर्जना ||
यदि काल हो विपरीत | ध्वज रणमें हो पतित |
प्राणों की देकर बाजी | ध्वज हम उभारे पुनः |

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