poem020

फटका – हिंदी

धन्य कुलों में धन्य सवाई भाग्य धन्य श्रीराजा का
सेवक तत्पर साथ जुडे हैं पुण्य बहुत श्रीचरणों का
राजश्री का भाग्य अलौकिक लोगों ने श्रम बहुत किये
जरीपटका भगवा फ़ैलाया अटके जीत का श्रेय लिये
जहाँ जहाँ था नाम पेशवा जिससे दुश्मन डरते थे
प्रजा चैन से सुख पाई थी रिपु सब दूर हटाये थे ||

नाच तमाशा खेल रंग नित खेले जाते जनता में
धनी पेशवा रंगोत्सव के मश्गूल थे आयोजन मे
राजा का मनभाव देखकर सहमती दी सब जनता ने
हर्ष घोष से चली प्रजा तब वर्षप्रतिपदा मनवाने
हाथी घोड़े फ़ौज पौर जन रोक खड़े उत्कंठा को
आज्ञा करदी प्रभुने तब अब शुरू करो तुम उत्सव को ||

आगे आगे गजारूढ़ प्रभू साथ हाथी थे अन्यों के
चंद्रबिंब से चमके स्वामी अन्य सितारों से दमके
पिचकारी से रंग उड़ाया बहुत मजे में बुधवारे
कपडे के हाटो से होकर पहुंचे सब तब इतवारे
सलाम मुजरे रिवाज़ रस्मे सभी नागरिक भूल गए
द्वापारे में रंगोत्सव जो प्रेम भाव से श्याम किए ||

हरीपंत के बाड़ेपर तो रंग केसरी खूब चला
नागझरी से रंग पाटकर हूजूम
झूमता सा निकला
रास्तेजी के गलियारे से रंग ही रंग बहा जमके
छज्जे और अटारी पर से रंग उड़ेला भर भर के
भीग गए घरदार सलौने रंगभरी पिचकारी से
द्वापर में हो श्याम खेलते रंगोंकी होली जैसे ||

झूम-झूमते चले सभी औ पहुंच गए जब बानवड़ी
दो घंटो तक नाच देखकर रंगो की भरमार पड़ी
दो दो हाथों गुलाल फेंके राव प्रभू ने मस्ती में
हास्यवदन शोभायमान वो शूर सिपाही फौजों में
लाखों हौद भरे रंगो से पिचकारी की मार चली
भीड़ बहुत रंगो से रंगी हर्षोल्हास किये उछली ||

गीतानुवाद : रणजित सावरकर
संगीत दिग्दर्शन : वर्षा भावे

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