poem004

अनादी मैं अनंत मैं

अनादी मैं अनंत मैं अवध मैं भला
मार सके कौन मुझे जगती रिपू पला ||
गमन करू जब हठात् धर्महेतू मैं !
मृत्यू को चुनौती देत खडा समर मैं !!
अग्नि से अदग्ध मैं अभेद्य खड्ग से !!
भाग चला भीरु मृत्यू डरत मुझी से !!
भ्रमित रिपू s ! साथ उसे !
मृत्यूभयं सें हि मुझे चला डराने !! !! १ !!

हिंस्त्र शेर पंजर मैं डाल दो मुझे !
नम्र दास बन लागे तळवे चाटने !
लहलहती ज्वाला मैं फेक दो मुझे !
अग्नी हटत, बनत शीत दीप्ती पाओगे !!
ला अपनी तोपें ला सैन्य जुझता !
यंत्र तंत्र शस्त्र अस्त्र आग उगलता !!
हला s हलको s ! जैसे शिव !
नष्ट करू वैसे मैं तुम्हे निगलता !! !! २ !!

Back to song list